दोसर वैश्य कब कहाँ कैसे : दोसर वैश्य का इतिहास

दोसर वैश्य कब कहाँ कैसे (Dosar Vaish): जबसे मैंने अपने समाज के कार्यक्रमों में भाग लेना प्रारंभ किया तो कोई न कोई चर्चा इसी बिंदु पर आकार रुक जाती कि हम  “दोसर वैश्य” कैसे कहलाये इस विषय को लेकर हम वर्षो तक मंथन ही करते रहे।

लेखक क्षेत्र से जुड़े होने के कारण इतिहास की पुस्तकों से हमारे समाज का जो इतिहास बना वह बड़ा ही संघर्ष पूर्ण मना गया। समाज के कुछ ही लोगो को सायद ज्ञात होगा कि यह समाज क्या था? हमने जो इतिहास का विश्लेषण किया वह बड़ा ही रोचक एवं सत्य के करीब निकला। दोसर वैश्य नाम हमे 1556 के बाद दिया गया जो आज तक प्रचलित है।

दोसर वैश्य कब कहाँ कैसे : दोसर वैश्य का इतिहास

11 फरवरी 1556 के दिन दिल्ली के शासक हिमायुं की मृत्यु के बाद, दिल्ली की सत्ता पाने के लिए अनेक राजपूत राजाओ ने प्रयास किया। पर वर्तमान के अफगान शासक अब्दुला शाह अब्दाली के भारतीय प्रतिनिधि “हेमू” वैश्य ने अपनी सूझ बुझ एवं सैन्य संगठन के बाल पर 7 अक्टूबर 1556 को दिल्ली के गवर्नर तरदी बेग को परास्त करके सत्ता पर आधिपत्य करके अपने को देश का शासक घोषित करते हुवे “हेम चन्द्र विक्रमादित्य” के नाम से अलंकृत किया।

कुछ दिनो बाद वह युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुवे। जिससे सत्ता सदैव के लिए मुस्लिमो के हाथो चली गयी जो बाद में अकबर जो उस समय बालक ही था बैरम खां के सानिध्य में शासन चलने लगा। “हेमू” के पतन के बाद बैरम खां द्वारा समस्त वैश्य समाज को मारा काटा जाने लगा, तो अन्य वैश्यों के दरबारियों ने कहा कि “हेमू तो ढूसी वैश्य थे इन्ही के समाज के लोगो ने सत्ता के लिए युद्ध किया था। फिर क्या था ढूढ-ढूढ कर हमारे समाज के युवको व वर्द्धो को मारा गया। विवश होकर समाज के बचे बंधू उत्तरपूर्ण की ओर पलायन कर गये। “ढूसी” ग्राम आज भी हरियाणा प्रान्त में राजस्थान सीमा के करीब गुडगाव जनपद में रेवाड़ी कस्बे के पास स्थित अरावली पर्वत श्रंखला में स्थित है। उस समय हमारा समाज कृष्ण भक्त था ‘हेमू’ के चाचा नवल दास उच्चकोटि के संत एवं लेखक थे उन्ही द्वारा अपने गुरु के सम्मान में लिखी गई पुस्तक “रसिक अनन्यमाला” का दोहा देखे

“श्री हित हरिवंश के शिष्य है जान |
दुसर कुल पवन कियो जिनको करौ बखान”

एक और प्रमाण देखे उत्तर भारत में केवल हमारे ही समाज में विवाह में वधू को निगोड़ा पहनाया जाता है। तो अन्य किसी भी समाज में नहीं चलता है, जबकि आज भी हरियाणा एवं राजस्थान की सीमा के अन्दर कुछ क्षेत्रो में निगोडो का चलन है, एक राजस्थानी गाना भी निगोडा को लेकर बना है।

हेमचन्द्र विक्रमादित्य हेमू के वीरगति प्राप्त होने के बाद यह समाज वर्षो तक तितर-बितर रहकर 16वि शताब्दी के आस-पास गंगा नदी के किनारे आ गया। उस समय यहां के शासक रजा कर्ण सिंह थे जो व्यापारिक नगर का निर्माण करने की योजना बनाये थे। उन्होंने ने हम वैश्यों को गंगा नदी के उत्तर एवं दक्षिण क्षेत्र को आवंटित करके उस क्षेत्र को ‘वैश्य वारा’ के नाम से घोषित कर दिया जो बिगड़ कर आज “वैसवारा’ के नाम से जाना जाता है।

ब्रिटिश शासन काल में 1880 में विभिन्न जनपदों में वैश्य समाज की गणना करायी गई। उसमे भी पैरा छ: में स्पष्ट निर्देशित किया गया की दोसर वैश्य का मूल स्थान दिल्ली ही है। इतिहासकार डॉ मोतीलाल भार्गव द्वारा किये गए शेष “हेम और उनका युग” में कहा गया है ढूसी जो हेमू का जन्म स्थल था। वहां के वैश्यों को दूसी वैश्य कहा जाता था जो बाद में दूसर वैश्य एवं वर्तमान में दोसर वैश्य कहे गए. (Dosar Vaish)

हमारा समाज पहले शस्त्रों का व्यापर करता था, तभी इस समाज के लोग राज्य सत्ता के आसपास या गांगो में जमीदारो के करीब रहकर उनकी अर्थव्यवस्था एवं शस्त्रों की व्यवस्था देखते थे 1857 के संघर्ष में फिर वैसवारा के हमारे दोसर वैश्य समाज में स्वत: का विगुल फूंका जिन्हें अंग्रेजो ने दबाकर उत्पीडन करना सुरु कर दिया।

आज अन्य प्रान्तों में जोभी हमारे बंधु चाहे रंगून हो नागपुर कोलकाता या अन्य प्रदेशो में निवास कर रहे हो। वह मूलतः वैसवारा के ही रहने वाले है जो 1857के बाद ही पलायन कर गए थे जैसा कि उन लोगो ने समय-समय पर स्वीकारा भी है।

1980 तक हमारे समाज के अनेक बन्धु आजीवन ग्राम प्रधान बने रहे पर गावो से निकल कर शहर कस्बो में बसने के कारण वह राजनीति की वह भागीदारी न कर पाए जो करनी थी। फिर भी दस वर्षो से कुछ लोग खुलकर शासन प्रशासन में स्थान बनाये है।

इस बार के स्थानीय निकाय के चुनाव में अनेक स्थानों पर सभासद एवं नगर पालिका के प्रमुख पदों पर जीते भी है तो कुल बन्धु विधायक बने एवं सांसद का चुनाव लड़ने की सोच भी रहे है।

वर्तमान समय में इस समाज के अनेक युवक युवतियां प्रशासनिक क्षेत्र में प्रवेश कर चुके है। कुछ तैयारी भी किये है पर अपेक्षित शिक्षा के अभाव में जन संख्या के अनुपात में विकास से वह काफी दूर है। मैंने इन सब विषयों को लेकर पुस्तक की रचना की है जो किन्ही कारण वश प्रकाशित नही हो पाई है जिसमे हमारे समाज का पूरा इरिहास समाहित है.

राममनोहर वैश्य
बेनीगंज हरदोई (UP)
Mo. 9795959745

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