सारगढ़ी का युद्ध Battle of Saragarhi :दोस्तों आप लोगों ने Hollywood movie Three hundred जरूर देखि होगी जिसमे 300 लोग अपने वतन की रक्षा के लिए अपनी जान की बाजी लगा देते है और दुश्मनों के दांत भी खट्टे कर देते है.
लेकिन अगर मैं आपको बताऊँ की मात्र 21 सिक्खों ने 10 हजार अफगानी लुटेरों को धुल चटा दी तो आप शायद इस बात पर विश्वास नहीं करेगे.
हमारे देश में कुछ ऐसे बुद्धिजीवी लोग रहते है जो सदैव ही पश्चिम को महान साबित करने की कोशिश में लगे रहते है लेकिन अपने देश के गौरवमय इतिहास का बखान करने में शर्म महसूस करते है.
दोस्तों आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि मैंने इस लेख को 9 सितम्बर 2017 को लिखा था। उस समय तक इस ऐतिहासिक लड़ाई पर बॉलीवुड में एक भी bollywood hindi movie नहीं बनी थी। लेकिन सन 2019 में इस घटना को लेकर अक्षय कुमार के लीड रोल में एक मूवी रिलीज़ हुई जिसका नाम केसरी था।
आप में से बहुत से लोगों ने इस मूवी को देखा होगा। और संभव है कि कुछ लोगों ने न भी देखा हो। चलिए आज मैं आपको इस घटना की कहानी बताने जा रहा हूँ जिस पर केसरी मूवी बनी है।
सारगढ़ी का युद्ध : Battle of Saragarhi
दोस्तों जो घटना में आज आपको बताने जा रहा हूँ वो पढने में किसी कहानी जैसी लगती है लेकिन ये कोई कहानी नही बल्कि सारागाढ़ी की लड़ाई एक सच्ची घटना है जब एक तरफ से 10 हजार अफगानी लूटेरो ने हमला बोला था तो उनसे मुकाबला करने के लिए वहां सिर्फ 21 सिख मौजूद थे और उसके बाद शुरू हुई थी दुनिया की सबसे महान लड़ाई घटना.
ये बात सन1897 की है जब नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर स्टेट मेँ 10 हजार अफगानोँ ने हमला कर दिया ! वे गुलिस्तान और लोखार्ट के किलोँ पर कब्जा करना चाहते थे !इन किलो को महाराजा रणजीत सिंह ने बनवाया था !
इन किलो के पास सारागढी में एक सुरक्षा चौकी थी ! जंहा पर 36 वीं सिख रेजिमेंट के 21 जवान तैनात थे 36वीं सिख रेजिमेंट में सिर्फ साबत सुरत (केश धारी सिक्ख) भर्ती किये जाते थे, ईशर सिँह के नेतृत्व मेँ तैनात इन 21 जवानोँ को पहले ही पता चल गया कि अफगानों की संख्या 10 हजार से ज्यादा है और वे सिर्फ 21 थे ऐसी सूरत में जिन्दा बचना नामुमकिन नहीं फिर भी इन जवानोँ ने लड़ने का फैसला लिया.
12 सितम्बर 1897 को सिखलैँड की धरती पर एक ऐसी लड़ाई हुयी जो दुनिया की पांच महानतम लड़ाइयोँ मेँ गिनी गई. बाहर से कही मदद मिलने की कोई उम्मीद नही थी लांस नायक लाभ सिंह और भगवान सिंह ने गोली चलाना शुरू कर दिया !
हजारों की संख्या में आये अफगानों की गोली का पहला शिकार बनें भगवान सिंह,जो की मुख्य द्वार पर दुश्मन को रोक रहे थे ! उधर सिखों के हौंसले से,अफगानों के कैम्प में हडकंप मचा गया था,उन्हें ऐसा लगा मानो कोई बहुत बड़ी सेना अभी भी किले के अन्दर है !
उन्होंने किले पर कब्जा करने के लिए दीवार तोड़ने की असफल कोशिशें की !
हवलदार इशर सिंह बड़ी कुशलता से नेत्रत्व संभाले हुए थे सेकड़ो अफगानी उनकी गोलियों का शिकार बने लेकिन कुछ ही समय बाद उनकी गोलिया खत्म हो गई तभी उन्होंने अपनी टोली के साथ गरजते हुए “जो बोले सो निहाल सत श्री अकाल” का नारा लगाया और दुश्मन पर निहत्थे ही झपट पड़े।
कहा जाता है के बिना किसी हथियार के सिर्फ हाथापाई मे उन्होंने 20 से अधिक पठानों को मौत के घात उतार दिया और उनकी बंदूके छीन कर अपने साथियों की तरफ उछाल दी तभी गुरमुख सिंह गरजते हुए बोले के ”हम भले ही संख्या में कम हो पर अब हमारी हाँथों में 2-2 बंदूकें हो गयी हैं और हम आख़िरी साँस तक लड़ेंगे” और सभी सिक्ख भूखे शेरो की तरह अफगानी कुत्तो पर टूट पड़े। अफगानों से लड़ते-लड़ते सुबह से रात हो गयी,और सभी 21 रणबाँकुरे शहीद हो गए !
लेकिन अपने जीते जी उन्होंने उस विशाल फ़ौज के आगे आत्मसमर्पण नहीं किया ! और 1400 अफानो को मौत के घाट उतर दिया अफगानियों को इस लड़ाई में भारी नुकसान सहना पडा लेकिन वे किले को फतह नहीं कर पाये !
सिख जवान आखिरी सांस तक लड़े और इन किले को बचा लिया ! जब ये खबर यूरोप पंहुची तो पूरी दुनिया उन सरदारों की बहादुरी के आगे सन्न रह गयी ! ब्रिटेन की संसद मेँ सभी ने खडा होकर इन 21 वीरों की बहादुरी को सलाम किया ! इन सभी को मरणोपरांत इंडियन आर्डर ऑफ़ मेरिट दिया गया ! जो आज के परमवीर चक्र के बराबर था !
पर अफ़सोस होता है कि जो बात हर भारतीय को पता होनी चाहिए, उसके बारे में कम लोग ही जानते है ! ये लडाई यूरोप के स्कूलोँ की किताबो मेँ पढाई जाती है पर हमारे यंहा लोग इस बारे में जानते तक नहीँ !