Bodhidharma History In Hindi
Bodhidharma History In Hindi: मार्शल आर्ट्स के जनक व बौद्ध भिक्षु बोधिधर्म का जन्म पाचवी शताब्दी के आस पास दक्षिण भारत में हुआ था. ये पल्लव राज्य के राजा सुगन्ध के तीसरे पुत्र थे. बोदिधर्म को पल्लव राज्य का राजा बनने की कोई इच्छा नहीं थी.
वह बचपन से ही बौद्धधर्म की शिक्षाओं से प्रेरित थे और और बौद्ध भिक्षु बनने की लालसा में उन्होंने छोटी उम्र में ही राज्य का त्याग कर दिया और बौद्ध भिक्षु बन गए. बोधिधर्म ने बौद्ध के सभी संस्कारों और दीक्षाओं को बहुत ही जल्दी आत्मसात कर लिया और मात्र 22 वर्ष की आयु में उन्होंने सम्बोद्धि यानि कि मोक्ष की पहली अवस्था को प्राप्त कर लिया.
मोक्ष की पहली अवस्था को प्राप्त करने के बाद उन्हें बौद्ध धर्म को पडोसी देशों तक प्रचारित करने की आत्म प्रेरणा मिली. और उन्होंने ने चीन, जापान, कोरिया में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया. बोधिधर्म को जापान में दारुमा के नाम से जाना जाता है. दारुमा को चीन में ज़ैन बौद्धवाद के संस्थापक के रूप में भी जाना जाता है
520 से 526वी ई० में चीन में ध्यान संप्रदाय की नीव रखी जिसे चों या झेन के नाम से संबोधित किया जाता है. जब वह चीन गए तो उस समय वह मार्शल आर्टस के साथ साथ औषधियों का भी अध्यन कर रहे थे.
Bodhidharma ने चीन जाकर बौद्ध धर्म की शिक्षाओं के साथ-साथ आयुर्वेद, योग, और लड़ने की कला मार्शल आर्ट्स का प्रचार किया और अपने शिष्यों को इसका ज्ञान देकर उन्हें इस विद्या में पारंगत बनाया.
Bodhidharma Story In Hindi



मार्शल आर्ट्स का नाम आते ही हमारे दिमाग में चीन का नाम याद आता है और आम तौर पे हम भारतीय यही समझते है की मार्शल की कला का अविष्कारक चीन है. जबकि सच्चाई इसके विपरीत है. मार्शल आर्ट्स में सबसे मुख्य है कुंग फु और दुनिया में इसे सीखने की सबसे अच्छी जगह है चाइना. चाइना में मार्शल आर्ट्स के कई स्कूल है जिनमे से सबसे प्रसिद्ध है शाओलिन टेम्पल. शाओलिन टेम्पल बौद्ध मंदिर होने के साथ साथ आत्म रक्षा प्रशिक्षण का केंद्र भी है जहाँ कुंग फु के साथ-साथ ध्यान व योग भी सिखाया जाता है. इस शाओलिन टेम्पल की आधारशिला एक भारतीय ने भिक्षु ने रखी थी जिनका नाम है बोधिधर्मा (Bodhdharma). बोधिधर्मा कुंग-फू के आविष्कारक थे। चीन में बोधिधर्मा को कुंग-फू का पितामह कहा जाता है और शाओलिन में उनके नाम पर कई मंदिर हैं जहा मार्शल आर्ट्स सिखाया जाता है.
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बोधिधर्म के जीवन से सम्बंधित महत्वपूर्ण बाते



बोधिधर्म का अधिकतम जीवन ध्यान अवस्था में ही बीता. वे न सिर्फ एक विलक्षण योगी थे बल्कि औषधि विज्ञानं का भी गूढ़ज्ञान रखते थे. इन्होने चीन की यात्रा समुद्री मार्ग से पूरी की थी और भारत में अर्जित किये गए ज्ञान को चीन तक पहुचाया. भारत में बहुत कम ही लोग बोधिधर्म के बारे में जानते है. बोधिधर्म बुद्ध परंपरा परम्परा के अट्ठाइसवें और अन्तिम गुरु हुए. बोधिधर्म के प्रथम शिष्य का नाम शैन-क्कंग था, जिसे शिष्य बनने के बाद उन्होंने हुई-के नाम दिया.
भारत में मार्शल आर्ट्स का इतिहास : Martial arts history in India
यदि भारत में मार्शल आर्ट्स के इतिहास को खंगाला जाए तो महाभारत आदि प्राचीन ग्रंथो में सबसे पहले इस विद्या का वर्णन मिलता है जहाँ इसे नियुद्ध के नाम से उल्लेखित किया गया है. निःयुद्ध एक प्राचीन भारतीय कला है. नियुद्ध शब्द का अर्थ है ‘बिना हथियार के युद्ध’ अर्थात् स्वयं निःशस्त्र रहते हुये आक्रमण तथा संरक्षण करने की कला.
दक्षिण भारत में इस कला को कलरीपायट्टु के नाम से जाता हैं. यह भारतीय विद्या बौद्ध भिक्षुओं तथा प्रवासी भारतीयों द्वारा विश्व के अनेक देशों में गयी तथा इससे अनेक युद्ध कलाओं का जन्म हुआ. यह कला जिस देश में पहुंची वहां के लोगों ने इसे अपनी स्थानीय भाषाओँ में एक नया नाम दिया.
चीन जैसे देश में इस विद्या को मार्शल आर्ट्स का नाम दिया दिया गया और आज पूरा विश्व इसे मार्शल आर्ट्स के ही नाम से ही जानता है. दुःख की बात तो यह है जो विद्या भारत जैसे देश से विदेशों में गयी और विश्व के सारे देशों से इसके जनक देश का नाम पुचा जाए तो संभवता सभी एक स्वर में चीन का नाम लेंगे ना कि भारत का.
हमारे देश के तथाकथित विद्वानों ने हमेशा से ही पश्चिम की तरफ देखा और खुद के देश की संस्कृति, चिकत्सा विज्ञानं, अर्थशास्त्र, गणित शास्त्र, युद्ध कला ज्ञान, विज्ञानं और योग आदि को कभी भी प्रचारित नहीं किया और ना ही उसे सम्मान दिलाने का प्रयास किया.
आशा करता हूँ दोस्तों आपको मार्शल आर्ट्स के आधुनिक जनक Bodhidharma History In Hindi लेख की जानकारी अच्छी लगी होगी.
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