Tenali Rama Story hindi : तेनाली राम का नाम तो सुना ही होगा वही तेनाली राम जिनके किस्से और कहानियां काफी लोकप्रिय है. तेनाली राम कवि होने के साथ साथ एक चतुर व्यक्ति भी थे. तेनाली राम विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय के दरबार के आठ रत्नों में से एक थे. उनकी तुलना अकबर के नवरत्नों में सर्वाधिक लोकप्रिय मंत्री बीरबल से की जाती है. आइये आज पढ़ते है कुछ मजेदार तेनाली राम की कहानियां Tenali Rama Story hindi.
Tenali Rama Story Hindi : राजा कृष्णदेव राय की शर्त
Tenali Rama Story hindi : एक बार पड़ोसी राज्य पर विजय प्राप्त करने पर राजा कृष्णदेव राय बेहद प्रसन्न थे। इसी ख़ुशी में उन्होंने सारे मंत्री और दरबारियों को बुलाया और सबको सौ स्वर्ण मुद्राओं की एक थैली दी। सारे मंत्री बेहद खुश थे।
राजा ने कहा – आप सभी को अपनी सौ स्वर्ण मुद्राओं को एक सप्ताह में ही खर्च करना है। सभी लोग अपनी मनपसंद सामग्री इस धन से खरीद सकते हैं। लेकिन एक सप्ताह बाद मुझे आकर बताना है कि आप लोगों ने क्या क्या खरीदा। और हाँ, स्वर्ण मुद्राएं खर्च करने से पहले मेरा मुख जरूर देखना। बिना मेरे मुख को देखे कोई भी स्वर्ण मुद्राएं खर्च नहीं करेगा।
सारे दरबारी स्वर्ण मुद्राएं पाकर बेहद खुश हुए और अपने घर की ओर चल दिए। अब जैसे ही कल सारे लोग बाजार गए और कुछ खरीदना चाहा तो अचानक उन्हें याद आया कि राजा ने कहा था कि मेरा मुख देखे बिना स्वर्ण मुद्राएं खर्च मत करना तो अब कैसे सामान खरीदा जाये?
कुछ मंत्रियों ने सोचा कि कुछ दिन बाद जब राजा बाजार जायेंगे तब हम भी उनका मुख देखकर सामान खरीद लेंगे। ऐसे ही समय बीतता गया और एक सप्ताह पूरा हो गया। ना तो राजा कृष्णदेव राय बाजार गए और ना ही कोई मंत्री कुछ खरीद पाया।
एक सप्ताह बाद राजा ने सभी दरबारियों से पूछा कि आपने क्या क्या खरीदा ?
सभी मंत्री एक स्वर में बोले – महाराज, आपने कहा था कि बिना आपके मुख देखे स्वर्ण मुद्राएं खर्च मत करना तो भला हम कैसे कोई सामग्री खरीद पाते। हमने तो आपकी आज्ञा का पालन किया और कुछ नहीं खरीद पाए।
अब राजा ने तेनालीराम से पूछा – आपने क्या खरीदा ?
तेनालीराम मुस्कुरा कर उठे और बोले – देखिये महाराज ये नया कुर्ता, नयी पगड़ी, नयी जूतियां, ये अंगूठी और ये एक आपके लिए कीमती तोहफा………
अब तो सारे दरबारी बड़े ही खुश हुए और सोचने लगे कि तेनालीराम ने राजा की आज्ञा का उलंघन किया है अब तो राजा इसे बहुत कड़ी सजा देंगे। तभी राजा ने तेनालीराम से पूछा कि मैंने कहा था कि मेरा मुख देखे बिना स्वर्ण मुद्राएं खर्च मत करना फिर तुमने कैसे ये सब खरीदा ? तुमको इसके लिए सजा भी मिल सकती है।
तेनालीराम ने कहा – महाराज मेरी पूरी बात तो सुनिये, आपको पता है कि हर स्वर्ण मुद्रा पर आपकी तस्वीर लगी हुई है। मैंने हर स्वर्ण मुद्रा खर्च करने से पहले तस्वीर में आपका मुख देखा और सामना खरीद लाया।
राजा मुस्कुराये और तेनालीराम को शाबाशी दी…
अब बेचारे सभी दरबारियों को फिर से शर्मिंदगी की सामना करना पड़ा।
Tenali Rama Story hindi
Tenali Rama Story Hindi : तेनालीराम और सोने के आम
Tenali Rama Story hindi : समय के साथ-साथ राजा कृष्णदेव राय की माता बहुत वॄद्ध हो गई थीं। एक बार वे बहुत बीमार पड़ गई। उन्हें लगा कि अब वे शीघ्र ही मर जाएंगी। उन्हें आम बहुत पसंद थे इसलिए जीवन के अंतिम दिनों में वे आम दान करना चाहती थीं, सो उन्होंने राजा से ब्राह्मणों को आमों को दान करने की इच्छा प्रकट की।
वे समझती थीं कि इस प्रकार दान करने से उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी, सो कुछ दिनों बाद राजा की माता अपनी अंतिम इच्छा की पूर्ति किए बिना ही मॄत्यु को प्राप्त हो गईं। उनकी मॄत्यु के बाद राजा ने सभी विद्वान ब्राह्मणों को बुलाया और अपनी मां की अंतिम अपूर्ण इच्छा के बारे में बताया।
कुछ देर तक चुप रहने के पश्चात ब्राह्मण बोले, ‘यह तो बहुत ही बुरा हुआ महाराज, अंतिम इच्छा के पूरा न होने की दशा में तो उन्हें मुक्ति ही नहीं मिल सकती। वे प्रेत योनि में भटकती रहेंगी। महाराज आपको उनकी आत्मा की शांति का उपाय करना चाहिए।’
तब महाराज ने उनसे अपनी माता की अंतिम इच्छा की पूर्ति का उपाय पूछा। ब्राह्मण बोले, ‘उनकी आत्मा की शांति के लिए आपको उनकी पुण्यतिथि पर सोने के आमों का दान करना पडेगा।’ अतः राजा ने मां की पुण्यतिथि पर कुछ ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलाया और प्रत्येक को सोने से बने आम दान में दिए।
जब तेनालीराम को यह पता चला, तो वह तुरंत समझ गया कि ब्राह्मण लोग राजा की सरलता तथा भोलेपन का लाभ उठा रहे हैं, सो उसने उन ब्राह्मणों को पाठ पढ़ाने की एक योजना बनाई। अगले दिन तेनालीराम ने ब्राह्मणों को निमंत्रण-पत्र भेजा। उसमें लिखा था कि तेनालीराम भी अपनी माता की पुण्यतिथि पर दान करना चाहता है, क्योंकि वे भी अपनी एक अधूरी इच्छा लेकर मरी थीं।
जबसे उसे पता चला है कि उसकी मां की अंतिम इच्छा पूरी न होने के कारण प्रेत-योनि में भटक रही होंगी। वह बहुत ही दुखी है और चाहता है कि जल्दी उसकी मां की आत्मा को शांति मिले। ब्राह्मणों ने सोचा कि तेनालीराम के घर से भी बहुत अधिक दान मिलेगा, क्योंकि वह शाही विदूषक है। सभी ब्राह्मण निश्चित दिन तेनालीराम के घर पहुंच गए। ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन परोसा गया। भोजन करने के पश्चात सभी दान मिलने की प्रतीक्षा करने लगे। तभी उन्होंने देखा कि तेनालीराम लोहे के सलाखों को आग में गर्म कर रहा है।
पूछने पर तेनालीराम बोला, ‘मेरी मां फोड़ों के दर्द से परेशान थीं। मृत्यु के समय उन्हें बहुत तेज दर्द हो रहा था। इससे पहले कि मैं गर्म सलाखों से उनकी सिंकाई करता, वह मर चुकी थी।’ अब उनकी आत्मा की शांति के लिए मुझे आपके साथ वैसा ही करना पड़ेगा, जैसी कि उनकी अंतिम इच्छा थी।’ यह सुनकर ब्राह्मण बौखला गए। वे वहां से तुरंत चले जाना चाहते थे।
वे गुस्से में तेनालीराम से बोले कि हमें गर्म सलाखों से दागने पर तुम्हारी मां की आत्मा को शांति मिलेगी?’
‘नहीं महाशय, मैं झूठ नहीं बोल रहा। यदि सोने के आम दान में देने से महाराज की मां की आत्मा को स्वर्ग में शांति मिल सकती है तो मैं अपनी मां की अंतिम इच्छा क्यों नहीं पूरी कर सकता?’
यह सुनते ही सभी ब्राह्मण समझ गए कि तेनालीराम क्या कहना चाहता है। वे बोले, ‘तेनालीराम, हमें क्षमा करो। हम वे सोने के आम तुम्हें दे देते हैं। बस तुम हमें जाने दो।’वे गुस्से में तेनालीराम से बोले कि हमें गर्म सलाखों से दागने पर तुम्हारी मां की आत्मा को शांति मिलेगी?’
‘नहीं महाशय, मैं झूठ नहीं बोल रहा। यदि सोने के आम दान में देने से महाराज की मां की आत्मा को स्वर्ग में शांति मिल सकती है तो मैं अपनी मां की अंतिम इच्छा क्यों नहीं पूरी कर सकता?’
यह सुनते ही सभी ब्राह्मण समझ गए कि तेनालीराम क्या कहना चाहता है। वे बोले, ‘तेनालीराम, हमें क्षमा करो। हम वे सोने के आम तुम्हें दे देते हैं। बस तुम हमें जाने दो।’
तेनालीराम ने सोने के आम लेकर ब्राह्मणों को जाने दिया, परंतु एक लालची ब्राह्मण ने सारी बात राजा को जाकर बता दी। यह सुनकर राजा क्रोधित हो गए और उन्होंने तेनालीराम को बुलाया।
वे बोले, ‘तेनालीराम यदि तुम्हें सोने के आम चाहिए थे, तो मुझसे मांग लेते। तुम इतने लालची कैसे हो गए कि तुमने ब्राह्मणों से सोने के आम ले लिए?’
‘महाराज, मैं लालची नहीं हूं, अपितु मैं तो उनकी लालच की प्रवृत्ति को रोक रहा था। यदि वे आपकी मां की पुण्यतिथि पर सोने के आम ग्रहण कर सकते हैं, तो मेरी मां की पुण्यतिथि पर लोहे की गर्म सलाखें क्यों नहीं झेल सकते?’
राजा तेनालीराम की बातों का अर्थ समझ गए। उन्होंने ब्राह्मणों को बुलाया और उन्हें भविष्य में लालच त्यागने को कहा।
Tenali Rama Story Hindi : तेनालीराम की तरकीब
Tenali Rama Story hindi : विजय नगर के राजा कृष्णदेवराय का एक दरबारी तेनालीराम से बहुत नाराज था| तेनालीराम ने उससे हंसी हंसी में कुछ ऐसी बात कह दी, जो उसे बुरी लग गई| दरबारी ने उसी दिन तेलानीराम से बदला लेने की ठान ली| दरबारी की तरह राजगुरु भी तेनालीराम हो पसंद नहीं करते थे| कहते हैं जब किसी व्यक्ति के दो दुश्मन हो तो वह दुश्मन आपस में दोस्त बन जाते हैं|
इसलिए दरबारी और राजगुरु में मित्रता हो गई| वह दोनों इस बात से भी नाराज थे की राजा भी हमेशा तेनालीराम की प्रशंसा करते हैं|
दरबारी राजा को हमेशा भला बुरा कहा करता था| यह बात तेनाली राम जानते थे| एक बार राजा से दरबारी और राजगुरु ने में शिकायत की. ‘ महाराज, तेनालीराम आपके मुंह पर मीठा बोलता है और पीठ पीछे आपकी बुराई करता है|’ राजा को विश्वास नहीं हुआ पर उन्होंने तेनालीराम से पूछ ही लिया| तेनालीराम समझ गए यह उस दरबारी और राजगुरु की चाल है| तेनालीराम ने राजा से कहा, ‘ महाराज, आपके शक् का जवाब मैं आज रात को दूंगा| आपको बस, मेरे साथ चलना होगा |
रात को तेनाली राम राजा के साथ राजगुरु के घर के पिछवाड़े पहुंचे और खिड़की के पास खड़े हो गए| दरबारी राजगुरू से कह रहा था, ‘ हमारे महाराज कान के बड़े कच्चे हैं | तेनालीराम जो अब तक कहता रहा उसे वह सच मानते रहे, और आज हम दोनों की बातें सच मान ली |’ इसके बाद भी वह राजा के लिए उल्टा सीधा कहता रहा | राजगुरू बोले तो कुछ नहीं लेकिन उन्होंने उसे मना भी नहीं किया| बाहर खड़े राजा ने सब कुछ सुना| तेनालीराम बोलें, ‘ महाराज, आपकी मेरे प्रति जो शिकायत की वह दूर हुई नहीं|’
राजा बोले, ‘ हां, तेनालीराम, पर राजगुरु के मन में हमारे लिए अब भी सम्मान है| लगता है राजगुरु तुमसे ईर्ष्या करने के कारण भटक गए हैं और गलत आदमी की बातों में पढ़ गए हैं| इसके जाल से राजगुरु को निकालने की जिम्मेदारी मैं तुम्हें दे रहा हूं|’
इस बार के कुछ दिन बाद तेनाली राम ने एक दावत रखी| उसमें राजा कृष्णदेवराय, राजगुरु और वह दरबारी थे| दरबारी को तेलानीराम ने अपने पास बिठा दिया| आपस में सब बात कर रहे थे| तेनाली राम ने अपना मुंह दरबारी के कान के पास ले जाकर कुछ कहा| तेलानीराम ने क्या कहा, यह उस दरबारी को कुछ समझ में नहीं आया| फिर तेलानीराम ने जोर से कहा, ‘मैंने तुमसे जो कहा है, किसी को बताना नहीं|’ यह देख राजगुरु के मन में सटका हुआ अवश्य तेलानीराम ने मेरी बात की है| राजगुरु ने मौका देखा और दरबारी से पूछा की तेनालीराम ने क्या कहा, तो उसने कहा, ‘कुछ नहीं| मेरे कान में वह कुछ बोला तो था, पर मैं समझा नहीं|’ राजगुरु ने सोचा, ‘यह मुझसे असली बात छुपा रहा है| ऐसी दोस्ती किस काम की? यह अवश्य ही तेनालीराम से मिला हुआ है| मैं समझता था कि यह मेरा सच्चा दोस्त है|’
उसके बाद राजगुरू और दरबारी की दोस्ती हमेशा के लिए खत्म हो गई| यह जानकर राजा ने तेनालीराम से कहा, ‘ वाह, तेनाली राम सच में ऐसा काम किया है सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी|