सूर्य ग्रहण हमारे सौर मंडल में होने होने वाली एक अदभुद खगोलीय घटना है, जो हमारे सौर मंडल के निर्माण के समय से होती चली आ रही है। Surya Grahan (Solar Eclipse) को लेकर प्राचीन काल से ही लोगों में उत्सुकता रही है। जिसकी वजह से लोगों में इसे लेकर तरह तरह की कहानियां प्रचलित रही है। लेकिन विज्ञान के विस्तार से इस रोचक खगोलीय घटना का रहस्य हम सब के सामने आ चूका है।
सूर्य हमारे सौरमंडल के केन्द्र में स्थित एक सबसे बड़ा तारा है जिसके चारों तरफ सौर मंडल के आठ गृह, क्षुद्रग्रह और धूमकेतु और अन्य अवयव परिक्रमा करते है। सूर्य हमारे सौर मंडल का सबसे विशाल पिंड है जिसका व्यास 13 लाख 90 हजार किलोमीटर है। यह कितना बड़ा है इसे हम ऐसे समझ सकते है कि सूर्य पृथ्वी से 108 गुना बड़ा है। यह हमारे सौर मंडल में उर्जा का सबसे बड़ा केंद्र है जो हाइड्रोजन और हीलियम गैसों से बना एक विशाल आग का गोला है।
आज हम सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse) कब होता है, कैसे लगता है इसकी पूरी जानकारी इस लेख में वैज्ञानिक और भारतीय खगोल विज्ञान के आधार पर जानेगे।
एक समय था जब सूर्यग्रहण को लेकर लोगों में तरह तरह की कथा कहानियां प्रचलित थी। लोग पौराणिक और मिथकों के आधार पर सूर्य ग्रहण को अपने हिसाब से बताते थे। लेकिन जैसे जैसे विज्ञान ने तरक्की की तो लोगों का मिथक टूट गया और सूर्य ग्रहण क्यूँ और कैसे होता है इसकी सटीक जानकारी हमारे सामने आ गयी।
चलिए सबसे पहले जानते है “Surya Grahan kab hota hai“?
सूर्य ग्रहण कब होता है?
सूर्यग्रहण आम तौर पर अमावस्या को होता है लेकिन यह हर अमावस्या को नहीं होता है ऐसा इसलिए है क्योंकि अमावस्या के दौरान चंद्रमा पृथ्वी के कक्षीय तल के बहुत ज्यादा पास होता है। लेकिन अगर चंद्रमा पूरी तरह से गोलाकार कक्षा में उसी कक्षीय तल में होता जिसमें पृथ्वी है, तो हर अमावस को सूर्य ग्रहण होता लेकिन चंद्रमा की कक्षा पृथ्वी की कक्षा से 5 डिग्री झुकी होने के कारण इसकी परछाईं पृथ्वी पर नहीं पड़ती है।
हमारी पृथ्वी गुरुत्वाकर्षण बल के कारण सूर्य की परिक्रमा करती है और चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है इसी परिक्रमा काल के दौरान जब चंद्रमा, पृथ्वी व सूर्य के बीच में आ जाता है तो चंद्रमा सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी पर पड़ने से रोक लेता है जिससे पृथ्वी के उतने हिस्से में अधेरा छा जाता है इसे ही विज्ञान की भाषा में सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse) कहते है। यह एक ऐसी स्थिति होती है जिसमे पृथ्वी चंद्रमा और सूर्य एक ही सीध में होते है।
जब सूर्य और पृथ्वी के बीच में चन्द्रमा आ जाता है तब सूर्यग्रहण होता है। यह एक ऐसी स्थति होती है जब सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुँच पाता है जिससे पृथ्वी का वो हिस्सा जो चन्द्रमा के सामने होता है उतने हिस्से में चंद्रमा की छाया पृथ्वी पर पड़ती है जिससे धरती का उतना हिस्सा अंधकार में डूब जाता है।
Solar Eclipse in Hindi:
इसे सामान्य रूप से हम ऐसे समझ सकते है जैसे हम किसी ऑब्जेक्ट को जलते हुए बल्ब के सामने रख दे तो वह ऑब्जेक्ट बल्ब के उतने हिस्से का प्रकाश रोक लेता है और हमें उस ऑब्जेक्ट की परछाई दिखाई देती है। ठीक इसी प्रकार से Moon जब हमारी Earth और Sun के बीच में आ जाता है तो चन्द्रमा सूर्य के प्रकाश को रोक लेता है और जैसा की हम जानते ही है चन्द्रमा का अपना कोई प्रकाश नहीं होता है इसलिए सूर्य की रौशनी प्रथ्वी तक नहीं पहुँच पाती है और चंद्रमा की परछाई हमारी प्रथ्वी पर पड़ती है जिसे हम Solar Eclipse कहते है।
सूर्य ग्रहण क्यूँ होता है?
सूर्य हमारे सौरमंडल के केन्द्र में स्थित एक सबसे बड़ा तारा है जिसके चारों तरफ सौर मंडल के आठ गृह जिनमे हमारी पृथ्वी भी शामिल है, क्षुद्रग्रह, धूमकेतु और अन्य अवयव परिक्रमा करते है। चंद्रमा प्रथ्वी का उपग्रह है जो पृथ्वी की परिक्रमा करता है। इसी परिक्रमा पथ पर परिक्रमा करते हुए एक काल ऐसा भी आता है जब पृथ्वी और सूर्य के बीच में चंद्रमा आ जाता है जिससे पृथ्वी पर चंद्रमा की परछाईं पड़ती है और सूर्य का प्रकाश नहीं पहुँच पाता है जिसकी वजह से सूर्यग्रहण होता है।
सूर्य ग्रहण कितने प्रकार का होता है चित्र सहित पूरी जानकारी ?
- सूर्य ग्रहण कितने प्रकार का होता है?
सूर्य ग्रहण मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं। 1. पूर्ण सूर्य ग्रहण 2. आंशिक सूर्य ग्रहण 3. वलयाकार सूर्य ग्रहण
- पूर्ण सूर्य ग्रहण कब होता है? चित्र सहित जानकारी
पूरा सूर्य ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बिलकुल बीच में आ जाता है जिससे चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह से ढक लेता है और इस समय पृथ्वी से केवल सूर्य का बाहरी हिस्सा ही दिखाई देता है। इसे ही पूर्ण सूर्य ग्रहण कहते है। हालाँकि Total Solar Eclipse पृथ्वी के कुछ ही हिस्सों में दिखाई देता है और बाकी जगहों पर आंशिक रूप से ही ग्रहण पड़ता है। पूर्ण सूर्यग्रहण अधिकतम 200 से 250 किलोमीटर के दायरे में ही होता है और पूर्ण सूर्य ग्रहण अधिकतम 7 मिनट का हो सकता है।
- आंशिक सूर्य ग्रहण कब होता है? चित्र सहित जानकारी
इस प्रकार के सूर्य ग्रहण में चंद्रमा आंशिक रूप से ही सूर्य को ढकता है और प्रकाश को धरती तक आने से रोकता है, इसे ही Partial Solar Eclipse कहते है। पृथ्वी के जिस भाग में सूर्य की रौशनी नहीं पहुँचती है वहां इस प्रकार के ग्रहण को देखा जा सकता है। इस प्रकार के सूर्य ग्रहण को पृथ्वी के कई हिस्सों में एक साथ देखा जा सकता है।
- वलयाकार सूर्य ग्रहण चित्र सहित
इस प्रकार के सूर्य ग्रहण में चन्द्रमा पृथ्वी से दूर होता है और पृथ्वी व सूर्य के बीच में आ जाता है, जिससे सूर्य का मध्य भाग चंद्रमा द्वारा ढक लिया जाता है और सूर्य की बाहरी सतह का प्रकाश पृथ्वी पर आता है। इस प्रकार के सूर्यग्रहण में सूर्य का बाहरी क्षेत्र एक डायमंड रिंग की तरह चमकता हुआ दिखाई देता है। इस प्रकार का ग्रहण वलयाकार सूर्य ग्रहण कहलाता है।
प्राचीन भारतीय खगोलशास्त्र के अनुसार सूर्य ग्रहण:
आज विज्ञान ने बहुत ज्यादा विकास कर लिया है। जिसकी वजह से ब्रम्हाण्ड के ऐसे बहुत रहस्य से पर्दा उठ चूका है, जो प्राचीन मानव के लिए एक अबूझ पहेली जैसा था। लेकिन ऐसा भी नहीं है विज्ञान के विकास से पहले सूर्यग्रहण और चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse) को लेकर सिर्फ और सिर्फ कपोल कल्पनाएँ ही व्याप्त थी। भारत के खगोलविदों से इस रहस्य से पर्दा उठा बहुत पहले ही उठा दिया था। भारतीय खगोलशास्त्र ने हमारे इस सौर मंडल को बहुत ही अच्छे से जान लिया था। भारतीय खगोलशास्त्र के अनुसार सूर्य ग्रहण कैसे लगता है लिखकर बताया गया है।
जहाँ पूरा विश्व सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण को लेकर अपनी अपनी कल्पनाओं और कथा कहानियों में ही विश्वास करता था वही भारत में सिद्धान्तशिरोमणि, सूर्यसिद्धान्त और ग्रहलाधव जैसे भारतीय खगोलशास्त्र के प्रसिद्द ग्रंथों Solar eclipse का वैज्ञानिक वर्णन किया जा चूका था।
ग्रहलाधव के चौथे अध्याय के चौथे श्लोक में एक मंत्र है “छादयत्यर्कमिन्दुर्विधं भूमिभाः” जिसमे ग्रहण का वर्णन है जिसके अनुसार जब सूर्य भूमि के मध्य में चद्रमा आता है तब सूर्य ग्रहण और जब सूर्य और चन्द्र के बीच में भूमि आती है तय चन्द्र ग्रहण होता है. अर्थात् चन्द्रमा की छाया भूमि पर (सूर्यग्रहण) और भूमि की छाया चन्द्रमा (चन्द्र ग्रहण) पर पड़ती है। सूर्य प्रकाशरूप होने से उसके सन्मुख छाया किसी की नहीं पड़ती किन्तु जैसे प्रकाशमान सूर्य व दीप से देहादि की छाया उल्टी जाती है वैसे ही ग्रहण में समझो।
सिद्धांत शिरोमणि और सूर्यसिद्धांत आदि ज्योतिष ग्रन्थ बताते हैं कि सूर्यग्रहण पृथ्वी पर चन्द्रमा की छाया पड़ने से और चंद्र ग्रहण चंद्रमा पर पृथ्वी की छाया पड़ने से होता हैं।
पौराणिक मान्यताओं के आधार पर सूर्य ग्रहण कैसे होता है?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सूर्यग्रहण कैसे होता है इसका विवरण विष्णु पुराण की एक कथा में है। आदिकाल में देव और असुरों मे बहुत लंबे समय तक युद्ध चला। तब भगवान् विष्णु ने इस युद्ध को रोकने के लिए समुद्रमंथन का विचार प्रस्तुत किया और यह समझौता कराया कि समुद्र मंथन से जो भी निकलेगा उसे देवता और असुर आधा-आधा बाट लेंगे।
समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से 14 रत्न उत्पन्न हुवे और इन में से ही एक रत्न अमृत निकला। अमृत के लिए असुरों और देवताओं में एक बार फिर से लड़ाई हुई जिसके बाद देवता भगवान् विष्णु के पास इस समस्या का समाधान के लिए गए।
कहानी के अनुसार भगवान् विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर असुरों को मोहित कर लिया और चतुराई के साथ देवताओं को अमृत और असुरों को साधारण जल पिलाने लगे। लेकिन एक असुर जिसका नाम राहू था उसे इस बात का पता चल गया और उसने देवताओं का रूप धारण कर अमृत को पी गया।
रहू की इस चतुराई को सूर्य देव और चन्द्र देव ने पहचान लिया और उन्होंने विष्णु भगवान को यह बात बताई जिस पर उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से राहु के सिर को धड़ से अलग कर दिया। तब तक राहु के गले तक अमृत की कुछ बूंदें जा चुकी थीं इसलिये सिर धड़ से अलग होने के बाद भी वह जीवित रहा, उसके सिर को राहु और धड़ को केतु कहा जाता है, इसी कारण राहु सूर्य-चंद्र को ग्रहण लगाता है।
सूर्य ग्रहण क्यों नहीं देखना चाहिए?
सूर्यग्रहण को कभी भी सीधे सीधे नंगी आँखों से नहीं देखना चाहिए, बिना किसी सोलर फ़िल्टर के सूर्य ग्रहण को देखने से हमारी रेटिना जल सकती है, जिससे एक्लिप्स ब्लाइंडनेस नामक बीमारी आपको हो सकती है। इस बीमारी से आपको अस्थायी या स्थायी दृष्टि हानि हो सकती है इससे अंधापन भी हो सकता है।
इसलिए सूर्य ग्रहण को कभी भी बिना किसी फ़िल्टर की मदद से नहीं देखना चाहिए। हमारे ज्योतिषविदों ने भी ग्रहण काल के दौरान घरों से बाहर निकलने को मन किया है। जिसके पीछे का एक वैज्ञानिक कारण यह भी है।
सूर्य ग्रहण कितने समय की अवधि तक रहता है?
सूर्यग्रहण सामान्यतः 1.5 से 2 घंटे का हो सकता है जबकि पूर्ण सूर्य ग्रहण अधिकतम 7 मिनट तक का हो सकता है।
भारतीय खगोल शास्त्र के अनुसार सूर्यग्रहण:
भारतीय खगोल शास्त्र के हिसाब से 18 साल 18 दिन में 41 सूर्य ग्रहण और 29 चन्द्र ग्रहण होते हैं। वहीँ एक साल में 5 सूर्यग्रहण और 2 चन्द्रग्रहण हो सकते हैं।
लेकिन 1 साल में कम से कम 2 सूर्य ग्रहण पड़ने ही चाहिए लेकिन किसी वर्ष में 2 ही ग्रहण पड़े तो वो दोनो ही सूर्यग्रहण होंगे। यद्यपि साल भर में 7 ग्रहण तक संभव हैं, लेकिन 4 से अधिक ग्रहण विरले ही देखने को मिलते हैं।
साधारणत: सूर्यग्रहण की बजाय चन्द्र ग्रहण अधिक दिखाई देते है, लेकिन वास्तविकता में चन्द्र ग्रहण से ज्यादा सूर्यग्रहण होते हैं।
चन्द्र ग्रहण के अधिक देखे जाने का मुख्य कारण यह है कि वे पृथ्वी के आधे से अधिक भाग में दिखाई पड़ते है, जब कि सूर्य ग्रहण पृथ्वी के बहुत बड़े भाग में प्राय सौ मील से कम चौडे और दो से तीन हजार मील लम्बे भूभाग में दिखलाई पडते हैं।
कुंडली में सूर्य ग्रहण:
यदि कुंडली में राहू सूर्य के साथ बैठा है तो जन्म कुंडली में “सूर्य ग्रहण दोष” बनता है। ठीक इसी प्रकार से यदि राहू कुंडली में चंद्रमा के साथ बैठा है तो चन्द्र ग्रहण दोष बनता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में इस प्रकार के दोष पाए है उन्हें गृह दोष निवारण हेतु उपाय करने चाहिए। जन्म कुंडली कैसे देखें इसकी जानकारी आप यहाँ से कर सकते है।
विशेष:
यहाँ सूर्य ग्रहण के सम्बन्ध में वैज्ञानिक द्रष्टिकोण के साथ भारतीय खगोल शाश्त्र के अनुसार सूर्यग्रहण कब होता है और कैसे होता है की चित्र सहित जानकारी दी है। इसके अलावा पौराणिक मान्यता के अनुसार चन्द्र ग्रहण की जानकारी भी दी गयी है। आपको Solar Eclipse के सम्बन्ध में दी गयी जानकारी कैसी लगी हमें कमेंट में जरुर बताये।